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फिल्मों से अलग एक दुनिया है

Guest Writer - inext
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फिल्में ही मेरे लिए सबकुछ नहीं हैं. मैं फिल्मों के लिए करो या मरो की हद तक पागल भी नहीं रहता हूं. फिल्मों से अलग हटकर भी मेरी एक दुनिया है. मैं रग्बी का राष्ट्रीय स्तर का खिलाडी हूं. क्रिकेट और रग्बी के प्रति जुनून है. जब एक शूटिंग और मैच का चुनाव करना होता है तो यह मेरे लिए दुविधा खड़ा करती है. और एनजीओ से जुड़ा हूं. अपने अदंर के कलाकार को संतुष्ट करने के लिए ही फिल्मों में करता हूं. अगर मुझे फिल्म व सोशल वर्क में से एक को चुनने को कहा जाए तो मैं फिल्म छोड़ दूंगा. मेरे लिए सामाजिक सरोकार ज्यादा अहम हैं. इसके बगैर मैं अपनी लाइफ के बारे में सोच भी नहीं सकता. यह मेरी जिंदगी का हिस्सा है. इसी जिंदगी को शुरु से जिया और आगे इसी फिलॉसफी को ट्रांसलेट करने की कोशिश करता रहूंगा.

हालांकि, जब मुझे सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्मों में अभिनय के प्रपोजल आते हैं, तो उन्हें स्वीकारने में वक्त नहीं लगता हूं. ‘ मुंबई चकाचक ‘ एक ऐसे बीएमसी वर्कर के सपने पर आधारित है. यह मेरा भी सपना है. ऐसी फिल्में सामाजिक संदेश तो देती हैं, पर मनोरंजक अंदाज में. मैं मानता हूं कि हिन्दी सिनेमा जगत को ऐसी फिल्मों की जरुरत है. मेरी कभी ख्वहिश नहीं रही कि मैं पेडों के इर्द-गिर्द हीरोइनों के साथ डांस करने वाला बॉलीवुड का टिपिकल  रिप्रेंटेंटिव बनूं. इंटरटेनमेंट इसके बिना भी हो सकती है, ऐसी मेरी पर्सनल ऑपिनियन है.

मेरी यह व्यक्तिगत राय है कि एक सेलीब्रेटी को सामाजिक रुप से जागरुक होना चाहिए. उसे मालूम होना चाहिए कि उसके मोहल्ले, शहर और देश में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है ? उसे अपने मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी होनी चाहिए. हालांकि, वे सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं या नहीं? यह पूरी तरह उनकी सोच पर निर्भर करता है. ऐसी गतिविधियों का हिस्सा लेते समय उन्हें एंज्वॉय करना चाहिए. अगर वे टाइम पास के लिए सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा बनते हैं, तो यह कहीं से भी सही नहीं है. ऐसे में बेहतर है कि आप अपने ग्लैमर की दुनिया में ही व्यस्त रहें.

इस इलेक्शन को मैंने बहुत करीब से देखा, जाना. बिलीव मी., चेंज साफ दिखा. खुद अपना अनुभव बताता हूं. जब बूथ पर कतार में लगकर वोट दिया तो ऐसा लग रहा था कि विजन इंडिया का पक्का सिपाही हूं.

मेरी ख्वाहिश भी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है. सोच पॉजिटिव हो, क्रिएटिव हो और सिस्टम में नुस्ख निकालने के बजाए उसे दुरुस्त करने के लिए फ्रंट से सामने आए. लोगों में सिविक सेंस डेवलप हो और इसको लेकर दूसरों को जागरुक भी करते रहें.

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